Tuesday, December 22, 2009

क्या कुदरत की यही रज़ा है,
या मेरे किसी गुनाह की सजा है?
के जब लगा हमें मिल गया किनारा,
तभी बदकिस्मती ने सीने में खंजर है उतारा...

Friday, December 4, 2009

ज़िन्दगी ये किस मोड़ पर ले आई है,
जहाँ शाम-ओ-सहर सिर्फ़ एक तनहाई है,
तुझसे एक यार ही तो माँगा था ऐ रब,
उसी में तुने मुझे दी उम्र भर की रुसवाई है??