आज ज़िन्दगी वीरान सी है,
तेरे बिन अनजान सी है,
गुम हो गई हो तुम किन गलियों में,
ये सोच सोच कर हो गई बेजान सी है!
शायद मेरी ही कोई खता हो,
पर मुझको इतना तो बता दो,
खता की सज़ा
मौत दी होती,
पर ये ज़िन्दगी तेरे बिन बर्दाश्त नही होती!
अब इस दिल में दर्द नही होता,
लगता है कि अब दिल नही रोता,
काश इस सीने में दिल ही ना होता,
तो तेरी मोहोब्बत में न खोता!
अब आँख के आसू सूख गए हैं,
अब दिल के अरमा रूठ गए हैं,
अब कोई मन को भाता नही है,
अब कोई इतना करीब आता नही है!
तुम मेरी मोहोब्बत कि इब्तेदा थी,
तुम्ही मेरी मोहोब्बत कि इंताहा हो,
तुम्ही से शुरू हुई जो मोहोब्बत,
तुम्हारे ही नाम पे वो फ़िदा हो!
मैं सदा चाहूँगा तुम्हे ख़ुद से बढ़कर,
खुदा से माँगूगा तुम्हे हर शे से बढ़कर,
अगर मेरी मोहोब्बत में है सच्चाई रत्ती भर,
तो तुम आओगी मेरे ही घर!!!