हमारी खता की सजा क्या है,
दिल ने जिसे चाहा उसे गिला क्या है,
हक-ऐ-बन्दगी ही तो माँगा था हमने,
तेरी नाराजगी की वजह क्या है?
Sunday, September 28, 2008
आओ बैठें, कुछ बात करें!
ज़िन्दगी के झमेलों से,
दुनिया के मेलो से,
इन सभी रेलों से दूर,
आओ बैठें, कुछ बात करें!
रोज़ी के ख्यालों से,
रोटी के सवालो से,
पैसे की इन टकसालों से दूर,
आओ बैठें, कुछ बात करें!
शहर की इस भीड़ से,
ईंटों के इस नीड़ से,
गाडियों के इस शोर से कहीं दूर,
आओ बैठें, कुछ बात करें!
बोहोत दिन हुए हमें आए,
शायद ही हम कभी करीब आए,
इन दीवारों से कहीं दूर,
आओ बैठें, कुछ बात करें!
दुनिया के मेलो से,
इन सभी रेलों से दूर,
आओ बैठें, कुछ बात करें!
रोज़ी के ख्यालों से,
रोटी के सवालो से,
पैसे की इन टकसालों से दूर,
आओ बैठें, कुछ बात करें!
शहर की इस भीड़ से,
ईंटों के इस नीड़ से,
गाडियों के इस शोर से कहीं दूर,
आओ बैठें, कुछ बात करें!
बोहोत दिन हुए हमें आए,
शायद ही हम कभी करीब आए,
इन दीवारों से कहीं दूर,
आओ बैठें, कुछ बात करें!
दिल करता है..
तेरे नैनो के इस सागर में,
डूब जाने को दिल करता है!
तेरे होठो की इस गागर से,
प्यास बुझाने को दिल करता है!
तेरे केशो की इस रजनी में,
गुम हो जाने को दिल करता है!
तेरे चेहरे के इस नरमी को,
छू जाने को दिल करता है!
तेरी बाहों के इस बंधन में,
समाने को दिल करता है!
बस इतना जान ले तू,
के तुझे अपना बनाने को दिल करता है!
डूब जाने को दिल करता है!
तेरे होठो की इस गागर से,
प्यास बुझाने को दिल करता है!
तेरे केशो की इस रजनी में,
गुम हो जाने को दिल करता है!
तेरे चेहरे के इस नरमी को,
छू जाने को दिल करता है!
तेरी बाहों के इस बंधन में,
समाने को दिल करता है!
बस इतना जान ले तू,
के तुझे अपना बनाने को दिल करता है!
मेरी चाहत...
कभी बैठे हुए अकेले में,
तेरी यादों के मेले में,
आँख भर आती है,
दिल सूना कर जाती है!
शायद वो दिन भले ही थे,
जब तुम हम अभी मिले नहीं थे,
तब शायद तुम अहम् नहीं थे,
तब तुममें कोई अहम् नहीं था!
पर अब कैसे बताऊँ तुम्हे,
किस हद तक अब चाहूं तुम्हे,
समझ नहीं मैं पाता हूँ,
कैसे कहू, के तुम्हे कितना चाहता हूँ!!
दिल में अब एक चाहत ही है,
तुमको पाने की ख्वाहिश ही है,
इस दिल की चाहत तुम समझो,
बन के बदरा मुझ पर बरसो!
तेरी यादों के मेले में,
आँख भर आती है,
दिल सूना कर जाती है!
शायद वो दिन भले ही थे,
जब तुम हम अभी मिले नहीं थे,
तब शायद तुम अहम् नहीं थे,
तब तुममें कोई अहम् नहीं था!
पर अब कैसे बताऊँ तुम्हे,
किस हद तक अब चाहूं तुम्हे,
समझ नहीं मैं पाता हूँ,
कैसे कहू, के तुम्हे कितना चाहता हूँ!!
दिल में अब एक चाहत ही है,
तुमको पाने की ख्वाहिश ही है,
इस दिल की चाहत तुम समझो,
बन के बदरा मुझ पर बरसो!
रौशनी को मेरा पता बता गया कोई!
एक उम्मीद सी जगा गया कोई,
मुझे इक नयी राह दिखा गया कोई,
मैं शायद अंधेरो में गुम रहता,
रौशनी को मेरा पता बता गया कोई!
तमाशा इस जहां का देखे हम जाते थे,
अपने ही आप में जीए हम जाते थे,
इस नाचीज़ को फलक पे बिठा गया कोई,
रौशनी को मेरा पता बता गया कोई!
इस दिल को धड़कने की आदत न थी,
नज़र को किसी की चाहत न थी,
नजरो के रस्ते इस दिल में समा गया कोई,
रौशनी को मेरा पता बता गया कोई!
अब नूर उसी का छाया है,
इस दिल में वही समाया है,
छनक के वो सामने मेरे आया है,
रौशनी को मेरा पता उसी ने बताया है!
मुझे इक नयी राह दिखा गया कोई,
मैं शायद अंधेरो में गुम रहता,
रौशनी को मेरा पता बता गया कोई!
तमाशा इस जहां का देखे हम जाते थे,
अपने ही आप में जीए हम जाते थे,
इस नाचीज़ को फलक पे बिठा गया कोई,
रौशनी को मेरा पता बता गया कोई!
इस दिल को धड़कने की आदत न थी,
नज़र को किसी की चाहत न थी,
नजरो के रस्ते इस दिल में समा गया कोई,
रौशनी को मेरा पता बता गया कोई!
अब नूर उसी का छाया है,
इस दिल में वही समाया है,
छनक के वो सामने मेरे आया है,
रौशनी को मेरा पता उसी ने बताया है!
कविता का शीर्षक है:जब याद तुम्हारी आती है
जब याद तुम्हारी आती है,
आँखों से अश्रु बहती है,
दिल को छलनी कर जाती है,
जब याद तुम्हारी आती है!
इस दिल में जो है छवि रची,
जो है आँखों में आन बसी,
वो मन ही मन मुस्काती है,
जब याद तुम्हारी आती है!
इस बार न असफल होऊंगा,
तुमको पाके ही जाऊँगा,
फिर जब याद तुम्हारी आएगी,
तो तुमको सामने पाऊँगा!
आँखों से अश्रु बहती है,
दिल को छलनी कर जाती है,
जब याद तुम्हारी आती है!
इस दिल में जो है छवि रची,
जो है आँखों में आन बसी,
वो मन ही मन मुस्काती है,
जब याद तुम्हारी आती है!
इस बार न असफल होऊंगा,
तुमको पाके ही जाऊँगा,
फिर जब याद तुम्हारी आएगी,
तो तुमको सामने पाऊँगा!
शीर्षक रहित
छंदों की माला बिखर गयी,
शब्दों के मोती टूट गए,
जब याद तुम्हारी आई तो,
आँखों से अश्रु छूट गए!
जाने ये कैसा बंधन है,
जिसमे बंध मैं असहाए सा,
पास तुम्हारे होते भी,
दूर स्वयं को पाता हूँ!
जाने ये कैसी खुशबू है,
जो खींच मुझे ले आती है,
पर जो धागे टूट गए,
उन्ही में फंसा रह जाता हूँ!
पर फिर भी मेरा मन यह स्वीकार नहीं कर पता है,
के जिसे चाहा था तन मन से,
वही रेत सा फिसला जाता है!
शब्दों के मोती टूट गए,
जब याद तुम्हारी आई तो,
आँखों से अश्रु छूट गए!
जाने ये कैसा बंधन है,
जिसमे बंध मैं असहाए सा,
पास तुम्हारे होते भी,
दूर स्वयं को पाता हूँ!
जाने ये कैसी खुशबू है,
जो खींच मुझे ले आती है,
पर जो धागे टूट गए,
उन्ही में फंसा रह जाता हूँ!
पर फिर भी मेरा मन यह स्वीकार नहीं कर पता है,
के जिसे चाहा था तन मन से,
वही रेत सा फिसला जाता है!
Tukbandi..
मेरे ख्वाबो की ताबीर हो तुम, मेरी ज़िन्दगी की लकीर हो तुम, अब और तुमसे क्या कहू, मेरी साँसों की ज़ंजीर हो तुम!!
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