Sunday, September 28, 2008

मेरी चाहत...

कभी बैठे हुए अकेले में,
तेरी यादों के मेले में,
आँख भर आती है,
दिल सूना कर जाती है!

शायद वो दिन भले ही थे,
जब तुम हम अभी मिले नहीं थे,
तब शायद तुम अहम् नहीं थे,
तब तुममें कोई अहम् नहीं था!

पर अब कैसे बताऊँ तुम्हे,
किस हद तक अब चाहूं तुम्हे,
समझ नहीं मैं पाता हूँ,
कैसे कहू, के तुम्हे कितना चाहता हूँ!!

दिल में अब एक चाहत ही है,
तुमको पाने की ख्वाहिश ही है,
इस दिल की चाहत तुम समझो,
बन के बदरा मुझ पर बरसो!

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